( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० )
है कौन जगतमें साथी ?
इसका भेद बतादो कोई ॥ टेक ॥
जब कष्ट करे यह देही ,
तब आवे साथि- सगाई ।
चलती के प्यारे भाईजी ,
पडतीके कोई नाही ।। १ ।।
जब ज्वानी तनमें आवे ,
तब नारी प्रेम लगावे ।
पडतीपे गालि सुनावेजी ,
खाँसीकी सवारी आई ।।२ ।।
जब पैसा करमें आवे ,
तब बेटा ' बाप ' कहावे ।
धन गया तो गाली खावेजी ,
बूढेकी खाट बिछाई || ३ ||
कहे तुकड्या आखिर साथी ,
एक प्रभू रहे जिय जाती ।
नर ! भक्ति करो धर प्रीतीजी ,
फिर दुःख कभू नहि आई ॥४ ॥
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